श्रमिक दिवस पर विशेष प्रस्तुति : क्‍या इतना नेक होना संभव है ?




आज मजदूर दिवस है और इस दिवस डा0 कविता किरण  मजदूरों  की पीड़ा को रेखांकित करती एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रही हैं ...! 







"अबके तनख्वा दे दो सारी बाबूजी
अब के रख लो लाज हमारी बाबूजी



इक तो मार गरीबी की लाचारी है

उस पर टी.बी.की बीमारी बाबूजी



भूखे बच्चों का मुरझाया चेहरा देख

दिल पर चलती रोज़ कटारी बाबूजी



नून-मिरच मिल जाएँ तो बडभाग हैं

हमने देखी ना तरकारी बाबूजी



दूधमुंहे बच्चे को रोता छोड़ हुई

घरवाली भगवान को प्यारी बाबूजी



आधा पेट काट ले जाता है बनिया

खाके आधा पेट गुजारी बाबूजी



पीढ़ी-पीढ़ी खप गयी ब्याज चुकाने में

फिर भी कायम रही उधारी बाबूजी



दिन-भर मेनत करके खांसें रात-भर

बीत रहा है पल-पल भारी बाबूजी



ना जीने की ताकत ना आती है मौत

जिंदगानी तलवार दुधारी बाबूजी



मजबूरी में हक भी डर के मांगे हैं

बने शौक से कौन भिखारी बाबूजी



पूरे पैसे दे दो पूरा खा लें आज

बच्चे मांग रहे त्यौहारी बाबूजी "

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डॉ कविता'किरण'


दैनिक हरिभूमि में : मजदूर दिवस एक, मजदूर अनेक, फिर भी साहब नेक (अविनाश वाचस्‍पति)

"हम सब मजदूर हो जाएं
किसी एक मजदूर का बोझा
हम सब मिलकर आज उठाएं
पर क्‍या इतना नेक होना संभव है
अपने मन में झांक कर देखिए
किसी मजदूर से नहीं जनाब
उसके काम को साझा कीजिए"



आओ मजदूर दिवस मनाएं




लो क सं घ र्ष ! न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई





























"बीता हुआ दिन
कल का जो दिन बीता
बिगड़ी हुई मशीन सा था
कल कितनी प्रतीक्षा थी
हवाओं में फैले गीतों की
गीतों को पकड़ते सुरों की
और नन्हे बच्चे सी मुस्कराती
ज़िन्दगी की
कल का दिन
बिगड़ी हुई मशीन सा था
कल राजाओं के
मखमली कपड़ों के नीचे
मेरे और तुम्हारे
उसके और सबके
दिलों की धड़कनें
काँटे मे फँसी मछली सी
तड़पती थीं
सचमुच प्रतीक्षा थी तुम्हारी
ओ आसमान की ओर बहती हुई हवाओं
तुम्हारी भी प्रतीक्षा थी
लेकिन कल का दिन
बिगड़ी  हुई मशीन सा था
कल का वो दिन
आज फिर उतर आया है
तुम्हारी आँखों में
आज भी तुम्हारी आँखें
भेड़िये की आँखों सी चमकती हुई
कल का खेल
खेल रही हैं ।"
---शरद कोकास

 “हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा माँगेंगे






  • आज मजदूर दिवस है - आज कोई मजदूर काम नहीं करेगा?
  • लेकिन क्या और दिवसों की तरह से इन मजदूरों का भी कहीं सम्मान किया जाएगा?
  • सरकार आज का वेतन इनको मुफ्त में बांटेगी?
  • वे संस्थाएं जो मजदूर दिवस का ढिंढोरा पीटती रहती हैं, इनको एक दिन कहीं होटल में सही ढाबे में ही मुफ्त खाना खिलवायेंगी ?
  • इनके इलाके में कोई ठेकेदार या पैसे वाला मुफ्त में मिठाई बांटेगा?
  • आज इनके मनोरंजन के लिए कोई कार्यक्रम इनकी झुग्गी - झोपड़ियों के आस-पास किये जायेंगे?
मेरी सोच पर रेखा श्रीवास्तव

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