एक कविता
करतालों की जगह
बजने लगा है पाखण्ड
अन्धविश्वास
रुढियों को कंधे पे लटकाए
सीढियां चढ़ रहा है
चट्ट चट्ट
लज्जित है सुबह की
सूर्य की किरणें
खंड-खंड तोता रटंत
यजमान लुभाते आख्यान
एक अखंड मुजरा
एक तेलौस मेज पर
टेल हुए नाश्ते के सामान
फैला पाश्चात्य
सुबह-ए- बनारस !
करतालों की जगह
बजने लगा है पाखण्ड
अन्धविश्वास
रुढियों को कंधे पे लटकाए
सीढियां चढ़ रहा है
चट्ट चट्ट
लज्जित है सुबह की
सूर्य की किरणें
खंड-खंड तोता रटंत
यजमान लुभाते आख्यान
एक अखंड मुजरा
एक तेलौस मेज पर
टेल हुए नाश्ते के सामान
फैला पाश्चात्य
सुबह-ए- बनारस !
- रवीन्द्र प्रभात
बड़ी खूबसूरत है जी...सुबह-ए-बनारस
ReplyDeleteहंसी के फव्वारे
भावपूर्ण सुन्दर कविता....
ReplyDeleteकरतालों की जगह
ReplyDeleteबजने लगा है पाखण्ड
अन्धविश्वास
रुढियों को कंधे पे लटकाए
बिलकुल सही कहा आपने। अच्छी लगी रचना। शुभ. का.
सुबह-ए-बनारस देख कर ऐसे भाव भी आ सकते हैं!
ReplyDeleteआदरणीय श्री केदार नाथ सिंह की प्रसिद्ध कविता बनारस के कुछ अंश देखिए...
कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भूत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं है
.......
सुबह-ए-बनारस क्या कहने।
ReplyDelete---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबिक्लुल सही बात कही है सर!
ReplyDeleteसादर
नई पुरानी हलचल ने परिचय कराया इस सुन्दर रचना का..
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