अद्वैत -


(संस्कृत शब्द, अर्थात अद्वैतवाद या एकत्ववाद या दो न होना), भारत के सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक, इसके अनुयायी मानते है कि उपनिष्दों में इसके सिद्धांतों की पूरी अभिव्यक्ति है औ यह वेदांत सूत्रों के द्वारा व्यवस्थित है, जहां तक इसके उपलब्ध पाठ का प्रश्न है, इसका ऐतिहासिक आरंभ मांडूक उपनिषद पर छंद रूप में लिखित टीका मांडूक्य कारिका के लेखक गौड़पाद से जुड़ा हुआ है।

गौड़पाद सातवीं शताब्दी से पूर्व, शायद पहली पांच शताब्दियों के कालखंड में कभी हुये थे, कहा जाता है कि उन्होनें बौद्ध महायान के शून्यता दर्शन को अपना आधार बनाया था। उन्होनें तर्क दिया कि द्वैत है ही नही। मस्तिष्क, जागृत अवस्था या स्वप्न में माया में ही विचरण करता है और सिर्फ अद्वैत ही परम् सत्य है। माया की अज्ञानता.....

1 comments:

  1. बहुत अच्छी लगी व्याख्या धन्यवाद्

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