आज हम बात करने जा रहे हैं "अ " वर्णानुक्रम के अर्न्तगत आने वाले एक ऐसे शब्द के बारे में जो साधारणतया देखने और सुनने में सहज प्रतीत होता है मगर जब इस शब्द की गहराई में जायेंगे तो व्यापक अर्थ का बोध होगा , यह शब्द है -अक्रियावाद -
(संस्कृत शब्द, अर्थात् कर्मो के प्रभाव को नकारने वाला सिद्धांत), पालि में अकिरियावाद, भारत में बुद्ध के समकालीन कुछ अपधर्मी शिक्षकों की मान्यताएं, यह सिद्धांत एक प्रकार का स्वेच्छाचारवाद था, जो व्यक्ति के पहले के कर्मो का मनुष्य के वर्तमान और भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव के पारंपरिक कार्मिक सिद्धांत को अस्वीकार करता है। यह सदाचार या दुराचार के माध्यम से किसी मनुष्य द्वारा अपनी नियति को प्रभावित करने की संभावना से भी इनकार करता है। इस प्रकार, अनैतिकता के कारण इस सिद्धांत के उपदेशकों की, बौद्धों सहित, इनके सभी धार्मिक विरोधियों ने आलोचना की, इनके विचारों की जानकारी बौद्ध और जैन साहित्य में अप्रशंसात्मक उल्लेखों के माध्यम से ही मिलती है। ज्ञात अपधर्मी उपदेशकों में से कुछ का विवरण इस प्रकार दिया जा सकता है। स्वेच्छाचारी सम्जय-बेलाथ्थि पुत्त, घोर स्वेच्छाचारीवादी पुराण कश्यप, दैववादी गोशला मस्करीपुत्र, भौतिकवादी अजित केशकंबली और परमाणुवादी पाकुड़ कात्यायन।

6 comments:

  1. अक्रियावाद का अर्थ कुछ भी न करने का समर्थन करना ही हुआ न । आलस्य को प्रपादित करना ही हुआ ।

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  2. अक्रियावाद !

    मनन कर रहे हैं!

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  3. अक्रियावाद अक्रमयता के समान ही हुया बहुत अच्छा चिश्लेषण है शुभकामनाये।

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  4. रोचक जानकारी...नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।

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  5. sir ji namaskar , aapne meri post padhi uske liye sadar aabhar,, aasha hai aapka margdarshan milta rahega.. naye saal ki subhkamnaye

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